जेल में पिटाई होने व धर्म के विपरीत बाल काट का मामला
आयोग की अनुशंसा - दोनों पीड़ितों को 50-50 हजार रूपये एक माह में अदा करें
इंदौर मध्यप्रदेश मानव अधिकर आयेाग ने झूठा केस बनवाने, जेल में पिटाई करने और धर्म के विपरीत बाल काट देने के एक मामले में दो पीड़ितों को पचास-पचास हजार रूपये एक माह में अदा करने की अनुशंसा राज्य शासन को की है। मामला इंदौर जिले का है। आयोग के प्रकरण क्र. 3866/इंदौर/2019 के अनुसार 18 जून 2019 को दोनों पीड़ितों की कार की टक्कर दूसरी कार से हो जाने के कारण जेलर ललित दीक्षित भड़क गये। उन्होंने गालियां दीं और लसूडिया थाना टीआई को बुला लिया। टीआई आये और दोनों पीड़ितों को थाने ले गये। बिना अपराध के थाने के लाॅक-अप में रखा। झूठी रिपोर्ट कर धारा 151 की कार्यवाही की गई। एसडीएम के आॅफिस से जेल का वारंट बना दिया गया। 19 जून 2019 को उन्हें जेल ले जाया गया। जहां जेलर ललित दीक्षित और उनके स्टाफ द्वारा दोनों पीड़ितों की आटा पीसने की मशीन वाले पट्टे से पिटाई की गयी। बिना खाना दिये बंद कर दिया गया। जेलर ने पुनः मारपीट की। 20 जून 2019 को जमानत होने पर शेरसिंह की तबीयत बिगड़ गयी। तब उन्हें एमवायएच इंदौर ले गये। पीड़ित सिख होकर, सहजधारी सिख हैं और अपने बाल बढ़ा रहे थे। उनके जबरदस्ती बाल कटवा दिये गये। मामले में आयोग ने पाया कि थाना पुलिस अधिकारी एवं जेलर द्वारा पीड़ितों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। इससे उनके मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन हुआ। आयेाग ने दोनों पीड़ितों को 50-50 हजार रूपये राहत राशि के रूप में देने की अनुशंसा की है। राज्य शासन चाहे, तो इस राशि की वसूली संबंधितों से कर सकता है। अपनी अनुशंसा में आयोग ने यह भी कहा है कि श्री ललित दीक्षित, तत्कालीन उप जेल अधीक्षक, जिला जेल इंदौर द्वारा जेल नियमावली के नियम 671, 672 एवं 395(3) की अवहेलना कर बंदियों के बाल एवं दाड़ी कटवाने, उनसे मारपीट करने, जेल स्टाफ एवं दण्डित बंदियों से अमानवीय व्यवहार एवं यातनायें देना सिद्ध होने पर उनके विरूद्ध विभागीय जांच एक माह में प्रारंभ कर उसका परिणाम आयोग को भी बताया जाये। इसी प्रकार श्री संतोष दुधी, निरीक्षक, तत्कालीन थाना प्रभारी, थाना लसूड़िया, जिला इंदौर द्वारा पीड़ितों को बेवजह अभिरक्षा में रखने, थाने का सीसीटीव्ही ठीक हालत में न रखने एवं धारा 151, 107, 116(3) दण्ड प्रक्रिया संहिता की संदिग्ध कार्यवाही करने के लिये उनके विरूद्ध विभागीय जांच एक माह में प्रारंभ कर उसका परिणाम भी आयोग को बताया जाये। दोनों पीड़ितों को थाना अभिरक्षा में होने के बावजूद भी उनका झगड़ा अभिरक्षा की अवधि में दर्शाकर उनके विरूद्ध धारा 151,107,116(3) जा.फौ. की फर्जी कार्यवाही करने के लिये श्री कमलेश मिश्रा, आरक्षक 2172 परसुराम एवं आरक्षक 3820 नीतेश राय के विरूद्ध विभागीय जांच एक माह में प्रारंभ कर उसका परिणाम भी आयोग को बताया जाये। अपनी अनुशंसा में आयोग ने यह भी कहा है कि राज्य शासन कारागार अधिनियम, 1894 के अध्याय-5 धारा 27(3) के अधीन जेलों में दोषसिद्धपूर्व के आपराधिक बंदियों को सिद्धदोष आपराधिक बंदियों से पृथक रखे जाने एवं जेल नियमावली के नियम 671,672, 395(3) एवं नियम 397 के वैधानिक प्रावधानों का सख्ती से पालन सुनिश्चित किया जाये। इसी तरह थाना स्तर पर माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय के प्रकाश में थानों में सीसीटीव्ही स्थापित करने एवं सीसीटीव्ही की फुटेज 18 महीनों तक संरक्षित करने की क्षमता, वृद्धि एवं सीसीटीव्ही सिस्टम का रख-रखाव करने से संबंधित कार्यवाही अगले एक माह में कराई जायें।